भारत सहित पूरी दुनिया में ऐसे अनेक मंदिर और तीर्थस्थल हैं जो अपनी प्राचीनता के साथ ही कुछ अलग खूबियों के कारण भी जाने जाते हैं। आंध्रप्रदेश के अनंतपुर में लेपाक्षी मंदिर भी ऐसा ही अद्भुत स्थान है। जिसमें प्राचीन शैली से निर्मित मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस मंदिर को हैंगिंग टेंपल भी कहा जाता है। यह नाम इसमें छिपे एक खास गुण के कारण दिया गया है।

कब और किसने बनवाया

श्रद्धालुओं के अनुसार यह मंदिर बहुत पुराना है। इसका निर्माण 1583 में दो भाइयों ने करवाया था। उनका नाम विरुपन्ना और वीरन्ना था। वे विजय नगर के राजा के नौकरी करते थे। मंदिर के पास ही नंदी की एक विशाल प्रतिमा भी है। यहां देवी को भद्रकाली कहा जाता है। और यह पूरी तरह एक ही पत्थर की संरचना है। मंदिर विजयनगरी शैली मेंबनाया गया है।

इस मंदिर का संबंध रामायण काल से जुड़ा है। इस मंदिर में एक पत्थर पर एक पदचिह्न भी अंकित है और मान्यता है कि माता सीता का पद चिह्न है। यह मंदिर वीरभद्र को समर्पित है। वीरभद्र दक्ष यज्ञ के बाद अस्तित्व में आया भगवान शिव का एक क्रूर रूप है। इसके अलावा शिव के अर्द्धनारीश्वर, कंकालमूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरारेश्वर रूप भी यहां दर्शनीय हैं।

क्यों कहते हैं हैंगिग टेंपल ?

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्‍थापित लेपाक्षी मंदिर 70 खंभों पर खड़ा है। वर्षों पहले यहां एक खंभा जमीन पर टिका हुआ था लेकिन एक ब्रिटिश इंजीनियर ने इसका रहस्य जानना चाहा और इस कोशिश में इस एकमात्र खंभे का भी जमीन से संपर्क टूट गया। जब से मंदिर का यह खंभा जमीन को छूता ही नहीं है। बल्कि हवा में झूलता रहता है। यही वजह है कि इस मंदिर को हैंगिंग टेंपल के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक कथा

लेपाक्षी मंदिर को लेकर एक और कहानी मिलती है। इसके मुताबिक एक बार वैष्णव यानी विष्णु के भक्त और शैव यानी शिव के भक्त के बीच सर्वश्रेष्ठ होने की बहस शुरू हो गई। जो कि सद‍ियों तक चलती रही। जिसे रोकने के लिए ही अगस्‍त्‍य मुनि ने इसी स्‍थान पर तप क‍िया और अपने तपोबल के प्रभाव से उस बहस को खत्‍म कर द‍िया। उन्‍होंने भक्‍तों को यह भी भान कराया कि विष्णु और शिव एक दूसरे के पूरक हैं।

यहां विष्णुजी को श‍िवजी के ऊपर प्रतिष्ठित किया है, रघुनाथ स्वामी के रूप में। इसलिए वह रघुनाथेश्‍वर कहलाए। यहां आने वाले श्रद्धालु खंभे से जुड़ी एक और रस्म निभाते हैं। वे इसके नीचे से एक कपड़ा निकालते हैं। माना जाता है कि इससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

हवा में क्यों झूल रहा है खंभा

कहा जाता है कि दूसरे खंभों की तरह यह खंभा भी पहले जमीन पर टिका हुआ था। एक बार किसी ब्रिटिश इंजीनियर ने यह जानना चाहा कि मंदिर खंभों पर कैसे टिका हुआ है। उसने इस कोशिश में खंभे को हिलाया और उसका धरती से संपर्क टूट गया। तब से आज तक यह खंभा हवा में झूल रहा है। इस मंदिर में भगवान शिव, विष्णु और वीरभद्रजी की पूजा की जाती है।

मंदिर को लेकर क‍िए जा चुके तमाम प्रयास

कहा जाता है कि वर्ष 1902 में उस ब्रिटिश इंजीनियर ने मंदिर के रहस्य को सुलझाने की तमाम कोशिशें कीं। इमारत का आधार किस खंभे पर है ये जांचने के लिए उस इंजीनियर ने हवा में झूलते खंभे पर हथौड़े से भी वार किए। उससे तकरीबन 25 फीट दूर स्थित खंभों पर दरारें आ गईं। इससे यह पता चला क‍ि मंद‍िर का सारा वजन इसी झूलते हुए खंभे पर है। इसके बाद वह इंजीनियर भी मंदिर के झूलते हुए खंभे की थ्‍योरी के सामने हार मानकर वापस चला गया।

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