आइए आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे मंदिर के विषय में जो हमारे प्राचीन समय से जुड़ा हुआ है जिसकी महत्ता कैलाश पर्वत जैसी ही मतलब कहने का तात्पर्य यह है कि इस शिव मन्दिर का महत्व भी कैलाश पर्वत के समान ही है .यह हैं प्राचीन कैलासा मंदिर । इसका महत्व भी कैलाश पर्वत जैसा ही परंतु अचंभे वाली बात यह है कि यहां कोई भी पूजा पाठ का कोई प्रावधान नहीं है , व यह प्रमाणित भी नहीं हो पाया है कि यहां कोई अनुष्ठान या पूजा कभी हुईं भी है या नहीं.
हमारे देश में कई प्राचीन,व अद्भुत और चमत्कारिक मंदिर हैं। यह भारत की ऐसी ही अनुठी धरोहर का एक अहम हिस्सा हैं,, एलोरा जिला औरंगाबाद में स्थित लयण पर्वत-श्रृंखला में तराशा गया यह विशाल कैलासा मंदिर। महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से बीस किलोमीटर दूर स्थित हैं .
यह 1200 साल पुराना और करीब 90 फीट की ऊंचाई वाला यह मंदिर “भगवान” शिव को समर्पित हैं। इस खुबसुरत मंदिर को यह बात और भी खुबसुरत और खास बनाती हैं कि यह दो मंज़िला , 276 फीट लंबा और 154 फीट चौड़ा यह मंदिर पर्वत की केवल एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया हैं। और यह दूनिया भर में एक ही पत्थर की शिला के इस्तेमाल से निर्मित भगवान शिव की सबसे बड़ी प्रतिमा होने के लिए प्रसिद्ध हैं।
भगवान शिव के इस कैलासा या कैलाश कहे जाने वाले मंदिर को हिमालय के कैलाश जिसे भगवान शिव के घर के रुप में जाना जाता हैं, बिल्कुल उसी प्रकार का रुप देने का प्रयास किया गया हैं। जिसे द्रविड़ शैली के मंदिर का रुप दिया गया हैं।
किसने बनवाया था यह मंदिर
इस मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत मालखेड़ी स्थित (राष्ट्रकूट) वंश के (प्रथम) नरेश कृष्ण नें (757-783 ई0) तक की थी। राष्ट्रकूट वंश के छठी और दसवीं शताब्दी के मध्य भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर शासन किया था।
यह तेजस्वी भगवान शिव के चौबीस मंदिरों और मठों के एक समूह का हिस्सा है, जिसे एलोरा गुफाओं के नाम से जाना जाता है। इस विशालकाय मंदिर को पूर्णत: तैयार करने में 100 वर्षो से ज़्यादा तक का समय लगा था। इस मंदिर को बनाने के लिए करीब 7000 मज़दूरों ने लगातार दिन रात काम किया था और अनुमानतः इस कार्य में दस पीढ़ियां लगी थी।
बड़ी विचित्र सी लगती हैं, यह बात
हिंदु मंदिरों में भगवान की प्रतिमा की समय-समय में पूजा का प्रावधान। रहा है,,और आराधना करने को खास महत्व दिया गया हैं। मगर कैलाश पर्वत जैसी महत्ता रखने वाले इस मंदिर में ऐसा क्यों नहीं होता ?यह आज तक ही एक प्रश्न चिन्ह मात्र ही बन गया है, माना जाता हैं। कि आज तक इस प्राचीन मंदिर में कभी भी पूजा किए जाने का कोई प्रमाण नहीं मिला हैं।
और आज भी इस मंदिर में कोई पुजारी नहीं हैं। न ही यहां पर नियमित रुप से कोई पूजा-पाठ होने का सिलसिला चलता हैं। और न ही कभी कोई पूजा पाठ हुईं हैं।न ही आज तक कोई प्रामाणित कर पाया है कि यहां कोई अनुष्ठान या पूजा पाठ होती हैं.
अनोखी तकनीक से बना हैं ये मंदिर
भगवान शिव का यह मंदिर दूनिया में एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जिसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया हैं। प्राचीन कैलासा मंदिर को अनोखी कट-आउट तकनीक से निर्मित किया गया हैं। एक कहानी के मुताबिक जब राष्ट्रकुट शासक एलु बीमार हो गए थे तो उनकी रानी ने प्रण लिया था कि अगर उनके पति ठीक हो जाते हैं, तो वे भगवान शिव के लिए एक शानदार मंदिर का निर्माण करवाएंगी और तब तक भोजन से परहेज़ करेंगी।
उनकी यह मनोकामना पुरी हो गई जब उनके पति ठीक हुए तब मंदिर निर्माण की योजना बनी मगर इसमें सालों लगने थे तब तक रानी बिना खाए कैसे रहती। एक वास्तुकार नें सुझाव दिया कि मंदिर ऊपर से नीचे तक उकेरा जाए ताकि रानी शिखर देखकर उपवास तोड़ ले।
आखिर गई कहा वो चट्टानें
इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार यह अनुमान लगाया गया है कि इस मंदिर को बनाने में लगभग 400,000 टन चट्टान को हटा दिया गया था। भारी चट्टान की यह विशाल मात्रा साइट के आसपास और आसपास कहीं भी किसी को भी देखने नहीं मिली या देखी नहीं गई। इसे कहां इस्तेमाल किया गया या डंप किया गया यह आज और अभी भी एक अनुत्तरित प्रश्न है?
तो इस तरह आज हमने एलोरा की गुफाओं के विषय में और प्राचीन कैलासा मंदिर के विषय में कुछ जानकारियां प्राप्त हुईं और हमें हमारे प्राचीन धरोहरों के विषय में कुछ साझा करने का मौका मिला।