धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि हम इन मंत्रों का जाप कर बड़ी से बड़ी महामारी से भय मुक्त हो सकते हैं जिससे आप स्वयं को सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर पाते हैं तो शास्त्रो के अनुसार मंत्रो के जाप से सकारात्मकता का संचार होता हैं जिससे हम उस स्थिति से निपटने लिए और भी ज्यादा बलशाली महसूस करते हैं , और सकारात्मक रह सकते हैं
कहते हैं सकारात्मक ऊर्जा रखने से आप आधे से ज्यादा परेशानियों को पार कर जाते हैं और आपको यह भान भी नहीं हो पाता है। मार्कंडेय पुराण से माता दुर्गा सप्तशती के पाठ से हम में सकारात्मकता का संचार होता हैं जिससे हम बहुत ही ऊर्जा वान महसूस कर रहे होते हैं।
इन मंत्रों के जाप से हम सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा दे सकते हैं जिससे हम इस महामारी से लडने के लिए और भी मजबूत बन जाएंगे ।।श्री मार्कण्डेय पुराण में श्री दुर्गासप्तशती में किसी भी बीमारी या महामारी का उपाय देवी के स्तुति तथा मंत्र द्वारा बताया गया है.ये महामारी देश भर के लोगों के लिए चिंता का विषय बन गई है. पर शक्ति उपासना के इस समय में आप वेद-पुराणों में बताए गए उपायों को अपना सकते हैं.
हमारे वेदों में महामारी से बचाव के लिए कुछ उपायों तो कुछ मंत्रों का जिक्र है. आप दोनों के बारे में जानें-
- घर में सुबह और संध्या के समय में नीम की लकड़ी या पत्तों की धुनी जलाएं.
- घर का वातावरण साफ और पवित्र रखें.
- कपूर को खुली कटोरी में रखें.
- अपना वस्त्र, बिस्तर और अपनी तमाम चीजें किसी को छूने ना दें जैसे व्रत के समय में होता है.
श्री मार्कण्डेय पुराण में श्री दुर्गासप्तशती में किसी भी बीमारी या महामारी का उपाय देवी के स्तुति तथा मंत्र द्वारा बताया गया है.
रोग नाश के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥
महामारी नाश के लिए-
ऊँ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
भगवान शिव के बेहद कल्याणकारी और मृत्यु को टालने तक में सक्षम इस महामृत्युंजय मंत्र को जपें-
ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
- न पहनें ऐसे वस्त्र
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्।
विषाणु स्मृति के अनुसार व्यक्ति को एक बार पहना गया कपड़ा धोए बिना फिर से धारण नहीं करना चाहिए। कपड़ा एक बार पहनने पर वह वातावरण में मौजूद जीवाणु और विषाणु के संपर्क में आ जाता है और दोबारा बिना धोए पहनने लायक नहीं रह जाता है।
- ऐसा में स्नान जरूर करें
चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानम्आचरेयु:।
वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च
विष्णुस्मृति में यह भी कहा गया है कि अगर आप श्मशान से आ रहे हों या फिर आपको उल्टी हो चुकी हो या फिर दाढ़ी बनवाकर और बाल कटवाकर आ रहे हों तो आपको घर में आकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए, नहीं तो आपको संक्रमण का खतरा बना रहता है।
- ऐसे कपड़ों से न पोंछें शरीर
अपमृज्यान्नच स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:।
मार्कण्डेय पुराण में लिखा है कि स्नान करने के बाद जरा भी गीले कपड़ों से तन को नहीं पोंछना चाहिए। ऐसा करने से त्वचा के संक्रमण की आशंका बनी रहती है। यानि किसी सूखे कपड़े (तौलिए) से ही शरीर को पोंछना चाहिए।
- हाथ से परोसा गया खाना
लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्।
धर्मंसिंधु के अनुसार नमक, घी, तेल या फिर कोई अन्य व्यंजन, पेय पदार्थ या फिर खाने का कोई भी सामान यदि हाथ से परोसा गया हो यानि उसको देते समय किसी अन्य वस्तु जैसे चम्मच आदि का प्रयोग न किया गया हो तो वह खाने योग्य नहीं रह जाता है। इसलिए कहा जाता है कि खाना परोसते समय चम्मच का प्रयोग जरूर करें।
- यह कार्य मुंह और सिर को ढककर ही करें
घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:।
नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:।
वाधूलस्मृति और मनुस्मृति में कहा गया है कि हमें हमेशा ही नाक, मुंह तथा सिर को ढ़ककर, मौन रहकर मल मूत्र का त्याग करना चाहिए। ऐसा करने पर हमारे ऊपर संक्रमण का खतरा नहीं रहता है।
- महामारी का संक्रमण : यदि किसी भी घर के सदस्य को ऐसा रोग हुआ जिससे दूसरों को भी रोग होने की संभावना है तो ऐसे सदस्य को घर से बाहर कुटिया बनाकर रहना होता था। कई परिस्थिति में तो ऐसे लोगों को गांव के बाहर उसकी व्यवस्था कर दी जाती थी। कई परिस्थिति में तो उसे घर के सदस्य रोगी को छोड़कर कहीं ओर चले जाते थे। ऐसे में रोगी को कई तरह के नियमों का पालन करना होता था जिसकी जानकारी उसे दे दी जाती थी।
भूपावहो महारोगो मध्यस्यार्धवृष्ट य:।
दु:खिनो जंत्व: सर्वे वत्सरे परिधाविनी।
अर्थात परिधावी नामक सम्वत्सर में राजाओं में परस्पर युद्ध होगा महामारी फैलेगी। बारिश असामान्य होगी और सभी प्राणी महामारी को लेकर दुखी होंगे।बृहत संहिता में वर्णन आया है कि ‘शनिश्चर भूमिप्तो स्कृद रोगे प्रीपिडिते जना’ अर्थात जिस वर्ष के राजा शनि होते है उस वर्ष में महामारी फैलती है। विशिष्ट संहिता अनुसार पूर्वा भाद्र नक्षत्र में जब कोई महामारी फैलती है तो उसका इलाज मुश्किल हो जाता है। विशिष्ट संहिता के अनुसार इस महामारी का प्रभाव तीन से सात महीने तक रहता है।
- बदलना होते हैं वस्त्र : शास्त्रों के कई जगह कहा गया है कि एक दिन से ज्याद वस्त्र को नहीं पहना चाहिए क्योंकि यह जीवाणु और विषाणु युक्त हो जाता है।
न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्।- विष्णु स्मृति
व्यक्ति को एक बार पहना गया कपड़ा धोए बिना फिर से धारण नहीं करना चाहिए।
- गीले वस्त्र से शरीर को नहीं पोंछना चाहिए : शास्त्रों के अनुसार स्नान के बाद सूखे वस्थ या तौलिये से ही अंग को पोंछना चाहिए। गीले कपड़ों से शरीर को पोंछने से त्वचा के संक्रमण की संभावना बढ़ जाती।
अपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:।- मार्कण्डेय पुराण
- सिर और मुंह ढककर ही करते थे ये कार्य : प्राचीनकाल में मलमूत्र त्यागने के स्थान घर से दूर होते थे। वहां पर भी वाधूल स्मृति और मनुस्मृति के अनुसार यह नियम थे कि ऐसा करते समय नाक, मुंह और सिर ढका रहना चाहिए क्योंकि उक्त स्थान पर संक्रमण फैलने का खतरा रहता है।
घ्राणास्ये वाससाच्छाद्या मलमूत्रं त्यजेत् बुध:।
नियम्य प्रयतो वाचं संवीतांगोस्वगुण्ठित:।- वाधूल स्मृति
- हनव क्रिया : कभी कभी जब परिवार में सारी प्रक्रियाओं का अनुसरण होने पर भी संक्रमण की संभावनाएं बरकरार रहती है इसलिए अंतिम शस्त्र के रूप में हवन किया जाता है। हवन होने के बाद घर का वातावरण शुद्ध हो जाता है और सूतक-पातक प्रक्रिया की मीयाद भी पूरी हो जाती है।
सभी तरह के संक्रमण से बचने के लिए प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनियों ने कुछ नियम बनाए थे जिसमें भोजन के नियम, उपवास के नियम, स्नान के नियम और शयन के नियम भी शामिल है। प्रकृति परिवर्तन की बेला को ही नववर्ष कहा गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए नवरात्र के 9 दिन तय किए गए। इस दौरान उपवास के साथ ही पवित्र और सात्विक भोजन करने से शक्ति और शुद्धि बनी रहती है।
भारतीय संस्कृति में हाथ मिलाने की नहीं नमस्कार करने की परंपरा भी इसी कारण जन्मी है। शाकाहार को महत्व देना, संध्याकाल के पूर्व ही भोजन कर लेना और प्रात:काल जल्दी उठकर संध्यावंदन करना या योग ध्यान करना भी सभी तरह के रोग से बचने का ही उपाय है। इसके साथ ही आयुर्वेद के अनुसार जीवन यापन करने की सलाह दी जाती है।
आज के इस महामारी के कारण आज हमें अपने शास्त्रो व पुराणों में दिए गए उपायो को अब हम अपने जीवन में अमल कर रहे हैं वह इस प्रकार हमारे यहां नमस्कार करने का संस्कार है व अब हम दुरी अपना रहे , हैं जिससे हम दुसरे के प्रति आदर पेश करते हैं इस प्रकार हमारे पुराणों ने हमें अपने पुराने आदर्श को मानने के लिए मजबूर कर दिया इस महामारी ने।