पश्चिम बंगाल में भाजपा के पिछड़ने के 7 मुख्य कारण
पश्चिम बंगाल चुनाव में 200 बार का नारा लेकर उतरी भाजपा पार्टी 100 से भी कम सीटों पर सिमट जाती दुख रही है। शुरुआती समय में बीजेपी और टीएमसी के बीच ले बीच में फासला कम दिख रहा था। जैसे-जैसे गणना ही आगे बढ़ी तो यह फासला थोड़ा बढ़ता गया और टीएमसी ने लीड बना ली ।

मौजूदा हालात को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि ता बनर्जी जो है तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रही है। अबकी बार 200 पार का नारा लेने वाली बीजेपी शो के अंदर से मिट्टी दिख रही है। शुरुआती रुझानों में यह देखने को मिल रहा था कि दोनों पार्टियां पास पास है लेकिन अभी ऐसा नहीं है अभी जनता पार्टी जो है 100 से नीचे ही अटकी हुई है। चुनावी शुरुआत में जो है। 55 दिन यह कहती थी कि हम तीन का आंकड़ा पार करेंगे और वह 2 के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाए।
भाजपा के पिछड़ने के 7 कारण इस प्रकार है।
1. नाम बड़े दर्शन छोटे :
पहला और अहम कारण यह लग रहा है कि। भाजपा के दिग्गज नेता हैं वह भी हारने की कगार पर हैं। दिग्गज नेता भी जो है अच्छा परफॉर्म नहीं कर पा रहे हैं। बड़े नेताओं का प्रदर्शन देखकर पार्टी में निराशा दिख रही है। पार्टी ने 2016 से अच्छा प्रदर्शन किया है। परंतु यह प्रदर्शन जो है वह उनकी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। हालांकि बीजेपी जो है टीएमसी के कुछ नेताओं को अपने पाले में लेने में सफल हो गई और वह लोग इतना अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाए। वहां का वोट जो है बीजेपी की और कन्वर्ट नहीं हो सके।
2. सीएम का मजबूत चेहरा ना होना
हालांकि बीजेपी ने चुनाव प्रचार में कोई भी कमी नहीं छोड़ी। बीजेपी के हर एक बड़े नेता ने पश्चिम बंगाल को विजिट किया। वहां बड़ी बड़ी रैलियां की। बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी, अमित शाह, शिवराज सिंह चौहान, योगी आदित्यनाथ मैं बड़ी बड़ी रैलियां की। पर जानकारों की बात माने तो बंगाल में कोई बड़ा मुख्यमंत्री चेहरा ना होने के कारण पार्टी का नुकसान हुआ है।
पार्टी ने जो है मुख्यमंत्री चेहरा पहले से घोषित नहीं किया। स्थानीय लोगों ने सोचा कि चेहरा बंगाल से बाहर का होगा। बीजेपी ने शायद चेहरा इसलिए नहीं बताया क्योंकि ममता बनर्जी के सामने उसके बराबर का कोई चेहरा नहीं दिख रहा था। प्रधानमंत्री स्वयं बंगाल में चुनाव कर रहे थे। पर मुख्यमंत्री का चेहरा उन्होंने साफ नहीं किया था।
3. कांग्रेस और लेफ्ट के जो वोट टीएमसी को मिले
बीजेपी ने इस चुनाव को द्विपक्षीय बना दिया था। किसी का नुकसान बीजेपी पार्टी को हुआ है। कांग्रेस और लेफ्ट के जो वोट थे टीएमसी की तरफ चले गए। मुस्लिम समुदाय ने जमकर टीएमसी की तरह वोटिंग की। इस प्रकार यह जो समीकरण हैं बीजेपी पर भारी पड़ा। उदाहरण के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि जो कांग्रेस का गढ़ था वह अब तृणमूल कांग्रेस की तरफ हो गया है।
4. कोरोना की दूसरी लहर के कारण भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हुआ।
आप सभी को पता है कोरोनावायरस की लहर ने पूरे देश का जो है हाल बेहाल कर रखा है। चीजों का फायदा उठाकर लोगों ने बीजेपी के लिए नेगेटिव कैंपेनिंग शुरू कर दी। भाजपा के चेहरे को धूमिल करने की कोशिश की ताकि इसका राजनीतिक फायदा हो सके।
हालांकि को राणा को देखते हुए पार्टी को अपना चुनाव प्रचार रोकना पड़ा इसके कारण भी भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हुआ। साथ ही टीएमसी ने हावड़ा,हुगली, परगाना,कोलकाता जैसे इलाकों अंदर अपनी बढ़त को बनाने में कामयाबी हासिल की।
5. एकजुट रहा है टीएमसी का वोट और बीजेपी ने लेफ्ट के वोट पर अपना अधिकार बनाया
अब तक के रुझानों में यह पता चला है कि बीजेपी ने जो है लेफ्ट और कांग्रेस के वोटों पर पकड़ बनाई थी। साथ ही जो टीएमसी का वोटर था उसने अपनी जगह चेंज नहीं की उसने पार्टी के साथ रहकर पार्टी को वोट किया। आंकड़ों से यह भी समझ में आ रहा है कि जो बीजेपी विरोधी वोटर था उसने टीएमसी के लिए खुलकर वोट किया।
6. बीजेपी द्वारा लगाए गए नारों के कारण भी काम बिगड़ा।
चुनावी दौर में समय में बीजेपी जो है जय श्री राम का नारा लेकर चुनाव में उतरी थी। पर जैसे-जैसे चुनाव प्रचार चालू हुए नारे में परिवर्तन होता गया। जय श्रीराम से शुरू होकर वह नारा दीदी ओ दीदी तक पहुंच गया। स्थानीय लोगों को यह मानना है कि महिला मुख्यमंत्री के ऊपर इस तरीके से बोले गए वाक्यों ने भारतीय जनता पार्टी को नुकसान पहुंचाया हैं ।
7. ममता बनर्जी ने भावनाओं का प्रयोग किया
जैसा कि हमने देखा कि ममता बनर्जी ने चुनाव के समय अपनी पैर की चोट को लेकर किस तरीके से प्रचार किया। उन्होंने लोगों के इमोशनल कार्नर को पकड़ा और लोगों को कहा कि मैं इतने कष्ट में होते हुए भी प्रचार कर रही हूं। उन्होंने अपने वोटर्स पर पकड़ बनाने में वह कामयाबी हासिल की ।
नतीजे जो भी हो हमेशा जनता ही जनार्दन होती हैं । वो अपने हित में ही वोट करती हैं । देखते हैं आगे बंगाल में कितना विकास होता हैं ।