अगर इंसान के अंदर दृढ़ निश्चय हो और कुछ कर गुजरने का जब्बा हो तो सफलता उसके कदम चूमती है I ऐसा ही कुछ कर दिखाया है राजस्थान के मारवाड़ में पैदा होने वाली उम्मुल खेर ने I उम्मुल खेर विकलांग पैदा हुईं, लेकिन उन्होंने विकलांगता को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया I उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई की I पहले ही प्रयास में यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा को पास कर दिखाया I

झुग्गी बस्ती में पली बढ़ी उम्मूल खैर
राजस्थान की रहने वाली उम्मुल खेर का परिवार गरीब और अशिक्षित था जब उम्मुल खेर 5 साल की थी। तब उसका परिवार रोजगार की तलाश में दिल्ली आ गया। उनके पास किराए का कमरा लेने के लिए भी पैसे नहीं थे I तो हजरत निजामुदीन के पास बारापुला में झुग्गी बस्ती के निकट रहने लगे। जहां पर झुग्गी में रहने लगे। जो बल्ली-फट्टों से बना हुआ था जिसमें चटाइयां लगी हुई थी I
बारिश में उम्मूल के परिवार को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। साल 2001 में झुग्गियां टूटीं तब उम्मूल और उनका परिवार बेघर हो गया। इसके बाद उनका परिवार त्रिलोकपुरी में एक सस्ता मकान लेकर रहने लगा।उम्मुल के पापा रेलवे जंक्शन के किनारे सामान बेचा करते थे जो घर बदलने पर वो भी छूट गया।
उन परिस्थितियों में उम्मुल ने त्रिलोकपुरी में ही बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, उस वक्त खुद भी 7वीं कक्षा में थी। एक बच्चे की फीस 50 रूपए महीना हुआ करती थी जिसमें 2 घंटे रोजाना भी पढ़ाना पड़ता था। बच्चों को पढ़ाकर बमुश्किल कमरे का किराया और खाने का पैसा इकट्ठा किया जाता था।
अपनी बीमारी को ताकत बनाया

उम्मुल बचपन से ही अजेलेबोन डिसऑर्डर नामक बीमारी से ग्रसित थी। इस बिमारी के होने के बाद हड्डियां कमजोर हो जाती है और इंसान सही से चल नही पाता है।इस तरह उम्मुल की हड्डियां गिरने की वजह से 28 साल की उम्र में 15 बार टूट गई थीउम्मुल खेर पैदा ही विकलांग हुई थी, परंतु उन्होंने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दी, बल्कि उसे अपना ताकत बना लिया।
बचपन में बहुत संघर्ष करना पड़ा
उम्मुल को बचपन में ही इस बात की समझ हो चुकी थी कि यदि जिंदगी को बेहतर बनाना है तो इसके लिए शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन परिवार के लोग नहीं चाहते थे की वो आगे की पढ़ाई करें।इसी दौरान उनकी माँ का देहांत हो गया। माँ उनके लिए एकमात्र सहारा थी जो हर परिस्थिति में बेटी का साथ देती थी।
पढ़ाई के लिए उम्मुल को घर छोड़ने पर विवश होना पड़ा। उन्होंने एक किराये की मकान ली और विषम आर्थिक परिस्थिति में भी ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च चलाया। आठवीं की परीक्षा वो अव्वल नंबर से पास की और फिर उन्हें स्कॉलरशिप का लाभ मिला। स्कॉलरशिप की बदौलत उन्हें एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। दसवीं में 91 फीसदी और 12वीं 90 फीसदी अंक हासिल करने के बाद उम्मुल दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन किया। इस दौरान भी उन्होंने अपने ट्यूशन पढ़ाने के क्रिया-कलाप को जारी रखा।
प्रथम प्रयास में यूपीएससी मैं सफल

उम्मुल खैर ने दिल्ली के जेएनयू से अपनी मास्टर और एमफिल पूरी की और साथही इन्होंने यूपीएससी की तैयारी जारी रखी। पिछले साल जनवरी में उन्होंने यूपीएसी की तैयारी शुरू की थी और अपने पहले ही प्रयास में सफल भी हुई। पहली बार मे ही यूपीएससी की परीक्षा पास करके 420 वी रैंक हासील की है।उम्मुल अब अपने परिवार की गलतियों को माफ़ कर उन्हें अपना चुकी हैं। उम्मुल ने ना केवल विकलांगता को छोड़ आगे बढ़ी, बल्कि गरीबी को भी हराया।
IAS बनने का सपना तो सभी देखते हैं लेकिन झुग्गी में पली बढ़ी एक लड़की ने विकलांगता को हरा कर IAS बनने का सपना पूरा किया I युवाओं को प्रेरणा जरूर लेनी चाहिए क्योंकि ऐसी बहादुर लड़की समाज के लिए मिसाल बन गई हैं।