हिंदू पंचांग के अनुसार पंचक के पांच नक्षत्र धनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपरद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र होते हैं। पंचक की स्वामी राशि कुंभ और मीन है। चंद्रमा के इन दोनों राशियों से गुजरने के समय को पंचक का समय कहा जाता है। यह पांच नक्षत्रो के मेल को पंचक काल कहते हैं ।
पंचक काल
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 5 नक्षत्रों को पंचक कहा जाता है। प्रत्येक महीने में आने वाले इन नक्षत्रों के साथ पंचक भी आता है। हिंदू पंचांग के अनुसार पंचक के पांच नक्षत्र धनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपरद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र होते हैं।
पंचक की स्वामी राशि कुंभ और मीन है। चंद्रमा के इन दोनों राशियों से गुजरने के समय को पंचक का समय कहा जाता है।
पंचक का महत्व
वैदिक ज्योतिषी में पंचक को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य को पंचक काल में करना वर्जित माना गया है। मुहूर्त का संबंध भी पंचक तिथियों से होता है। माना जाता है कि हर महीने आने वाली पंचक तिथियों में कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करना फलदायी नहीं होता।
आइए जानते हैं पंचक तिथियों से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें -:
यदि परिवार का कोई सदस्य पंचक के समय मृत्यु को प्राप्त होता है तो परिवार के अन्य पांच सदस्यों पर भी संकट रहता है।
ऐसा माना जाता है कि पंचक काल में देहत्याग करने वाले मनुष्य की आत्मा को शांति नहीं मिलती।
पंचक तिथि में शुरू किए गए कार्य को पांच बार करना होता है।
पंचक काल में दक्षिण की यात्रा करने के लिए मना किया जाता है एवं जमीन खरीदने और बेचने की भी मनाही है।
फर्नीचर की खरीदारी भी पंचक तिथि में अशुभ मानी जाती है।
अगर कोई शांत हो जाए तो ऐसी परंपरा है कि उसके साथ 5 कुशा के पुतले बनाकर जला दिया जाता है जिससे परिवार के किसी सदस्य पर संकट न रहे।
मान्यता है कि पंचक काल में कोई भी बुरा अथवा अच्छा कार्य पांच बार किया जाता है।
पंचक की मान्यता :
- गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है।
- ऐसी मान्यता है कि यदि धनिष्ठा में जन्म-मरण हो, तो उस गांव-नगर में पांच और जन्म-मरण होता है। शतभिषा में हो तो उसी कुल में, पूर्वा में हो तो उसी मुहल्ले-टोले में, उत्तरा में हो तो उसी घर में और रेवती में हो तो दूसरे गांव-नगर में पांच बच्चों का जन्म एवं पांच लोगों की मृत्यु संभव है।
- मान्यतानुसार किसी नक्षत्र में किसी एक के जन्म से घर आदि में पांच बच्चों का जन्म तथा किसी एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर पांच लोगों की मृत्यु होती है। मरने का कोई समय नहीं होता। ऐसे में पांच लोगों का मरना कुछ हद तक संभव है, परंतु उत्तरा भाद्रपदा को गृहपंचक माना गया है।
- पंचक में जन्म-मरण और पांच का सूचक है। जन्म खुशी है और गृह आदि में विभक्त इन नक्षत्रों के तथाकथित फल पांच गृहादि में होने वाले हैं, तो स्पष्ट है कि वहां विभिन्न प्रकार की खुशियां आ सकती हैं। पांच मृत्युओं का अभिप्राय देखें तो पांच गृहादि में रोग, कष्ट, दुःख आदि का आगम हो सकता है।
- कारण व्यथा, दुःख, भय, लज्जा, रोग, शोक, अपमान तथा मरण- मृत्यु के ये आठ भेद हैं। इसका मतलब यह कि जरूरी नहीं कि पांच की मृत्यु ही हो पांच को किसी प्रकार का कोई रोग, शोक या कष्ट हो सकता है।
- खासकर यदि मृत्यु पंचक में मृत्यु हुई है तो ही इस पर विचार किया जाना चाहिए। शनिवार को मृत्यु पंचक रहता है।
पंचक में मृतक का उपाय :
‘प्रेतस्य दाहं यमदिग्गमं त्यजेत् शय्या-वितानं गृह-गोपनादि च।’- मुहूर्त-चिंतामणि
- अब यदि किसी व्यक्ति का पंचकाल में निधन हुआ है तो लकड़ी एकत्र करने के कार्य के साथ ही दाह संस्कार भी करना ही होता है। ऐसे में पंचक का क्या उपाय है।
- यदि पंचक काल में शव दाह करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पांच अलग पुतले बनाकर उनका भी उसी चिता के साध दाह संस्कार कर देना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य विद्वान पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि विधि अनुसार यह कार्य किया जाए तो संकट टल जाता है।
- पंडित के कहे अनुसार शव के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।
- गरुड़ पुराण अनुसार अगर पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसमें कुछ सावधानियां बरतना चाहिए। सबसे पहले तो दाह-संस्कार संबंधित नक्षत्र के मंत्र से आहुति देकर नक्षत्र के मध्यकाल में किया जा सकता है।नियमपूर्वक दी गई आहुति पुण्यफल प्रदान करती हैं। साथ ही अगर संभव हो दाह संस्कार तीर्थस्थल में किया जाए तो उत्तम गति मिलती है।
- यदि आप समय पर पंचक का उपाय नहीं कर पाएं हैं तो किसी पंडित से पूछकर नदी के किनारे विधिवत रूप से भी पंचक का निदान करवा सकते हैं।
इस समय कोई भी शुभ कार्य जैसे ग्रहप्रवेश और बच्चों का मुंडन नहीं करना चाहिए।