दोस्तों आज हम जो पानी आपको सुना रहे हैं. यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिसे देश की सेना का अध्यक्ष भी अंतिम समय तक याद रखता है. इस कहानी में हम आपको बताएं कैसे एक ऊंट चराने वाला व्यक्ति सैनिकों के दिल में इतनी अहमियत रखता है.

यह कहानी एक ऐसे ‘पागी’ की है जोकि 58 साल की उम्र के बाद भी देश के लिए कुछ ऐसा कर गया केहर सैनिक अध्यक्ष अंतिम क्षणों तक उसका नाम याद रखते हैं.

देश में यह पहली बार हुआ हैकि किसी आम आदमी के नाम पर हमारे देश के एक बॉर्डर का नाम रखा गया. और साथ में ही उस व्यक्ति की प्रतिमा भी स्थापित की गई. आज युवा पीढ़ी ऐसे क्रांतिकारी देशभक्त को बहुत कम जानती है. इसलिए आप सबको एक बार जरूर इस क्रांतिकारी देशभक्त की कहानी पढ़ लेनी चाहिए .

गुजरात के एक आम परिवार में जन्मे रणछोड़दास ‘पागी’ का जीवन भेड़, बकरी और ऊंट आदि में ही गुजरा है. रणछोड़दास ‘पागी’ अधिकतर समय ऊंट को चराने में बिताया करते थे. लेकिन कहते हैं,इंसान की जिंदगी बदलने में देर नहीं लगती ऐसा ही कुछ रणछोड़दास पागी के साथ हुआ.

हुनर की वजह से बदली उनकी किस्मत

अगर व्यक्ति के पास हुनर हो तो उसकी किस्मत कहां से कहां पहुंच जाती है. रणछोड़ दास पागी के पास भी एक ऐसा ही हुनर था.जिसके जरिए वो ऊंट के पैरों के निशान देखकर ही बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार थे. खास बात यह कि रणछोड़ दास ‘पागी’ का यह हुनर बिल्कुल सही बैठता था. आगे चलकर इसी उम्र के कारण होने भारतीय सेना का स्काउट गाइड के रूप में भर्ती किया गया.

सेना ने जो दी जिम्मेदारी, उसे बख़ूबी निभाया…

रणछोड़ दास पागी को सेना के द्वारा जो काम दिया जाता था. उसे वह बड़ी ईमानदारी से निभाता था.1965 की बात है कि पाकिस्तानी सेना के द्वारा कच्छ क्षेत्र के कई गांव पर कब्जा जमा लिया गया . ऐसे में रणछोड़ दास को दुश्मनों का पता लगाने का काम सौंपा गया. ‘पागी’ ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई. उन्होंने बहुत ही कम समय में पद चिन्हों के जरिए जंगलों में छुपे 1200 सैनिकों का पता लगाकर उन के छक्के छुड़ा दिए.

इस मिशन के लिए सेना के अध्यक्ष मानेकशॉ ने पागी को खुद चुना था.सेना में ‘पागी’ नाम की विशेष उपाधि उनके द्वारा ही दी गई थी ‘पागी’ मतलब ऐसा गाइड, जो पैरों के निशान पढ़ लेता हो, 1965 के युद्ध के बाद ‘पागी’ ने 1971 के युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में ‘पागी’ को सेना के मार्गदर्शन के साथ-साथ मोर्चे पर गोला-बारूद लाने की जिम्मेदारी भी दी गई थी.

पाकिस्तान के ‘पालीनगर’ पर तिरंगा लहराने की जीत में ‘पागी’ का रोल अहम रहा था उनके योगदान के लिए ‘संग्राम पदक’, ‘पुलिस पदक’ और ‘ग्रीष्मकालीन सेवा पदक’ जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. रणछोड़ दास का योगदान हर सैनिक अपने अंतिम समय तक याद रखते हैं

‘पागी’ ने 108 साल की उम्र में सेवानिवृत्त ली

रणछोड़दास पागी ने 2009 में सेना से सेवानिवृत्त ली थी, उस वक्त उनकी उम्र 108 वर्ष थी। अब आप सोच सकते हैं की उस व्यक्ति के पास कितना तजुर्बा था। रणछोड़दास का निधन 112 वर्ष की आयु में 2013 में हुआ था.

Leave a Reply

Your email address will not be published.